Header Ads

Thursday, May 30, 2019

विंध्याचल मंदिर का रोचक रहस्य जो आपको पता नही होगा / Vindyachal temple mystery

विंध्याचल, एक शक्ति पीठ, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में तीर्थ यात्रा का एक केंद्र है। यहां स्थित विंध्यवासिनी देवी मंदिर एक प्रमुख आकर्षण है और देवी के आशीर्वाद का आह्वान करने के लिए चैत्र और आश्विन महीनों के नवरात्रियों के दौरान सैकड़ों भक्तों द्वारा लगाया जाता है।

शहर के अन्य पवित्र स्थान हैं अष्टभुजा मंदिर, सीता कुंड, काली खोह, बुद्ध नाथ मंदिर, नारद घाट, गेरुआ तालाब, मोतिया तालाब, लाल भैरव और काल भैरव मंदिर, एकदंत गणेश, सप्त सरोवर, साक्षी गोपाल मंदिर, गोरक्ष-कुंड मत्स्येंद्र कुंड, तारकेश्वर नाथ मंदिर, कंकाली देवी मंदिर, शिवाशिव समुद्र अवधूत आश्रम और भैरव कुंड। मिर्जापुर निकटतम रेलवे स्टेशन है। विंध्याचल के पास के शहरों के लिए नियमित बस सेवाएं हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन मिर्जापुर में है। कुछ महत्वपूर्ण ट्रेनें विंध्याचल रेलवे स्टेशन पर भी रुकती हैं। नियमित बस सेवाएं विंध्याचल को नजदीकी शहरों से जोड़ती हैं।

विंध्याचल 70 किमी। (डेढ़ घंटे की ड्राइव) वाराणसी से, एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर है जो देवी विंध्यवासिनी को समर्पित है। माना जाता है कि देवी विंध्यवासिनी बृद्धावस्था की तात्कालिक सर्वश्रेष्ठ शक्ति हैं। विंध्यवासिनी देवी मंदिर पवित्र गंगा नदी के किनारे मिर्जापुर से 8 किमी दूर स्थित है। यह पीठासीन देवता विंध्यवासिनी देवी के सबसे प्रतिष्ठित सिद्धपीठों में से एक है। मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में लोग आते हैं। चैत्र (अप्रैल) और अश्विन (अक्टूबर) महीनों में नवरात्रों के दौरान बड़ी मंडलियां आयोजित की जाती हैं। कजली प्रतियोगिताएं ज्येष्ठ (जून) के महीने में आयोजित की जाती हैं। मंदिर काली खोह से मात्र 2 किमी की दूरी पर स्थित है।

मां विंध्यवासिनी एक ऐसी जागृत शक्तिपीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी रहेगा. यहां देवी के 3 रूपों का सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है.
पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है. मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल की देवी मां विंध्यवासिनी. विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है.

त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं. विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिद्वि प्राप्त होती है. विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं.

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता. यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्वि प्राप्त होती है. इस कारण यह क्षेत्र सिद्व पीठ के रूप में विख्यात है. आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनाथयों का आना-जाना लगा रहता है. चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां देश के कोने-कोने से लोगों का का समूह जुटता है. ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं. इसकी पुष्टि मार्कंडेय पुराण श्री दुर्गा सप्तशती की कथा से भी होती है/


                                                                                                                                रोहित मौर्या 

No comments:

Post a Comment